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क्या मोदी की रेशमबाग यात्रा भाजपा अध्यक्ष की दुविधा का समाधान करेगी?


समीर वानखेड़े:
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद रविवार को पहली बार नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रेशमबाग मुख्यालय का दौरा कर रहे हैं। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी पहले भी कई बार नागपुर आ चुके हैं, लेकिन आरएसएस मुख्यालय नहीं गए हैं। लेकिन अब वे विशेष रूप से टीम के मुख्यालय का दौरा करने आ रहे हैं। और उनके कार्यक्रम भी उसी के अनुसार आयोजित किये गये हैं। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के दौरे का असली कारण उन्हें भाजपा अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करना और भाजपा पार्टी के भीतर की कड़वाहट को कम करना है, और यह सच भी हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी को 2024 के लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसका मुख्य कारण यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चुनावों में भाजपा को पूर्ण सहयोग नहीं दिया। बेशक, इसकी वजह यह थी कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा द्वारा दिया गया एक बयान। लोकसभा चुनाव से पहले एक इंटरव्यू में जे.पी. नड्डा ने कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भाजपा को चलाने के लिए आरएसएस की जरूरत थी, क्योंकि तब भाजपा एक छोटी पार्टी थी और सक्षम नहीं थी। लेकिन अब पार्टी की ताकत बढ़ गई है। हम पहले की तुलना में अब अधिक सक्षम हैं। भाजपा अब पूरी पार्टी खुद चलाती है। पार्टी के नेता अपने कर्तव्यों और भूमिकाओं का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। भाजपा को अब चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरूरत नहीं है।  
जे.पी. नड्डा के बयान से न केवल संघ के स्वयंसेवक बल्कि संघ नेतृत्व भी नाराज हो गया। टीम की नाराजगी के बारे में बात करते हुए सुनील आंबेकर ने कहा था, “यह एक घरेलू विवाद है और हम इसे घर के अंदर ही सुलझा लेंगे।” इसका मतलब यह था कि संघ नड्डा और प्रधानमंत्री मोदी से नाराज था।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी समय-समय पर भाजपा और नरेंद्र मोदी को कठोर शब्द कहे हैं। नागपुर में आयोजित कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन समारोह में सरसंघचालक ने भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को जमकर खरी-खोटी सुनाई थी। इसके लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कबीर के दोहे का सहारा लिया। सरसंघचालक ने कहा था, सेवक कैसा होना चाहिए? सेवा करने वालों में अहंकार या अहंभाव नहीं होना चाहिए। एक तरह से आरएसएस प्रमुख ने मोदी का नाम लिए बिना ही उनकी आलोचना की थी। 
इतना ही नहीं, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी मणिपुर मुद्दे पर केंद्र सरकार की आलोचना की थी। दस साल पहले शांतिपूर्ण रहा मणिपुर पिछले एक साल से शांति का इंतजार कर रहा है और अब यह पता नहीं चल पा रहा है कि वहां अशांति अचानक पैदा हुई है या उसे बनाया गया है। मणिपुर उस आग में जल रहा है और लोग घबरा रहे हैं, इस पर कौन ध्यान देगा? यह सवाल पूछते हुए आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को मणिपुर पर प्राथमिकता से ध्यान देने की जरूरत है।
इस तरह से देखें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद से भाजपा बढ़ी, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे, लेकिन सत्ता में आते ही अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी ने संघ को दरकिनार करने की कोशिश की। दरअसल, हर चुनाव में आरएसएस के स्वयंसेवक बहुत अनुशासित तरीके से प्रचार करते हैं और भाजपा की जीत सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं। कोई भी नहीं चाहता कि भाजपा नेता संघ स्वयंसेवकों की इसके लिए प्रशंसा करें। क्योंकि स्वयंसेवक सौंपे गए कार्य को पूरा करते हैं और फिर दूसरे कार्य पर लग जाते हैं। हालांकि, इसके बावजूद जे.पी. नड्डा के बयान से संघ नेतृत्व नाराज है।
दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में देवेंद्र फडणवीस ने बड़े पैमाने पर आरएसएस की मदद ली थी। फडणवीस ने यह सुनिश्चित करने के लिए आरएसएस की मदद ली कि लोकसभा चुनाव में जो हुआ वह महाराष्ट्र में न हो और भाजपा तथा उसके सहयोगी दल सत्ता में आएं और आरएसएस ने भी पूरी ताकत से भाजपा के लिए प्रचार किया। यही कारण है कि भाजपा का महागठबंधन भारी संख्या में जीतकर सत्ता में आया। प्रधानमंत्री मोदी अभी भी महाराष्ट्र में फडणवीस जैसा रवैया अपनाने के लिए तैयार नहीं थे।
यही कारण है कि जे.पी. नड्डा का अध्यक्ष पद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी भाजपा नया अध्यक्ष नहीं चुन सकी, क्योंकि भाजपा द्वारा भेजे गए नामों को संघ नेतृत्व ने मंजूरी नहीं दी थी। संघ को आश्चर्य हो रहा था कि संघ की मदद से सरकार बनाने के बाद भी संघ को नाम दिए जा रहे हैं, तो वे हमसे क्यों पूछ रहे थे। हालांकि, भाजपा नेतृत्व को पता है कि भविष्य में संघ की सहमति के बिना भाजपा के लिए अध्यक्ष का चुनाव करना मुश्किल हो जाता। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने संघ के साथ सामंजस्य बिठाने और नाराजगी दूर करने का बड़ा काम अपने हाथ में लिया है और इसीलिए वे रविवार को नागपुर के रेशिम बाग आएंगे और सरसंघचालक मोहन भागवत से बातचीत करेंगे। 
प्रधानमंत्री बनने के बाद से मोदी कभी भी नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय नहीं गए हैं। लेकिन अब उन्हें टीम के मुख्यालय जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आरएसएस मुख्यालय जाकर प्रधानमंत्री मोदी भाजपा और आरएसएस के बीच की कड़वाहट को कम करने या खत्म करने का हरसंभव प्रयास करेंगे।

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